माता-कुमाता या पुत्र कुपुत्र (कहानी) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु-12-Jun-2024
माता- कुमाता या पुत्र- कुपुत्र (कहानी) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु
रुस्तमपुर गांँव में मालती देवी और हंसराज निवास करते थे। मालती देवी को घर- परिवार से अधिक प्यार उनकी खूबसूरती से था,वह पूरे टाइम अपनी ख़ूबसूरती के ही ख्याल रखने में मशगूल रहती थी।
मालती देवी और हंसराज के चार बेटे थे। जिनसे मालती को कोई खास लगाव नहीं था। क्योंकि उन्हें बच्चों से अधिक अपनी ख़ूबसूरती प्यारी थी। जब कोई उनकी ख़ूबसूरती का बखान करता तो वो फूले नहीं समातीं।
ख़ैर जो धरती पर आया है वह बड़ा होगा ही। यही बात उन चारों बच्चों के साथ भी लागू हुआ। समय के साथ-साथ बच्चे किशोर और फिर युवावस्था में प्रवेश किए। एक-एक करके चारों बच्चों की शादी भी हो गई। शादी होते ही तीन बच्चों ने अपनी अलग दुनिया बसा लिया किंतु बड़ा बेटा माता-पिता के साथ यह सोचकर रहा कि कोई तो उनके साथ होना चाहिए
शादी तो हो गई लेकिन माँ को पोता- पोती की चाहत नहीं था। शादी के 3 वर्ष पश्चात। बड़ी बहू का गर्भ ठहर गया और 9 महीने बाद घर में किलकारियांँ गूँजने लगीं लेकिन वो किलकारियाँ मालती देवी के चेहरे पर बनावटी हँसी भी लाने में सक्षम नहीं हो पाईं।
बड़ी मुश्किल से बेटा-बहू व पोता दो वर्ष बीता पाए थे कि मांँ ने घर में ऐसा हड़कंप मचाया कि रामू और रमा को अपने बच्चे के साथ घर छोड़कर किराए के घर में जाकर रहना पड़ा। और इस तरह उनकी लिए अलग गृहस्थी बस गई अब घर में सिर्फ मालती देवी और हंसराज बचे थे, जिसकी मालती देवी को चाह थी।
रमा और रामू के बच्चे को पैदाइशी कुछ मस्तिष्क संबंधी समस्या थी जो कि सही देखभाल न होने के कारण विकराल रूप ले ली। और अब वह बच्चा कभी भी बेहोश होकर गिर जाता।इसे कहा जाता है सिर मुड़ाते ही ओले पड़ना। एक तो पहले ही रहने, खाने का ठिकाना नहीं था उसमें बच्चे की बीमारी ने रामू और रमा की कमर को तोड़ दिया।
घर छोड़ने के पश्चात आर्थिक तंगी और मानसिक रूप से परेशान रामू की उसके माता-पिता, बाकी तीन भाई बहन किसी ने कभी भी सुध नहीं ली। सबके रहते रामू दुनिया में अनाथ हो गया था। बहुत मेहनत मज़दूरी करके रमा और रामू अपने बेटे का इलाज़ कराए,उसे पढ़ा- लिखाकर योग्य बनाये।
जब तक पोता बड़ा हुआ तब तक दादा- दादी बूढ़े हो चुके थे और उनके तीन बच्चों ने बुढ़ापे में उनकी सेवा करने से सा़फ मना कर दिया था।क्योंकि वो सब उनके त्रिया- चरित्र और छल- कपट से वाक़िफ थे।
अंत में वृद्धावस्था में मालती देवी और हंसराज रमा और रामू के यहाँ आए दोनों ने उनका जी- जान से स्वागत किया और अपनी हैसियत से बढ़कर खाने-पीने का ख़्याल रखा। किंतु तब भी मालती देवी घर में कलह कराने का एक भी मौका नहीं छोड़तीं जिससे रमा और रामू बड़े आहत हुए। और कुछ दि नों पश्चात उन्हें उनके घर छोड़ अपनी छोटी सी गृहस्थी में खु़शी-खु़शी जीवन व्यतीत करने लगे।
आज के अत्याधुनिकता, विलासिता,धनलोलुपता, स्वार्थलिपसा की अंधी दौड़ में शामिल होने की होड़ में जिनकी आंँखों पर लालच की पट्टी बँध गई है ऐसी माता भी कुमाता हो सकती है और पुत्र भी कुपुत्र हो सकता है। अतः- पूत कपूत भले ही होवे माता ना होती कुमाता। पूरी तरह ग़लत साबित हो गई है। और आज- 'बाप बड़ा ना भैया, सबसे बड़ा रुपइया' उक्ति ज़्यादा पुष्पित- पल्लवित हो रही है।
साधना शाही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
Babita patel
03-Jul-2024 08:40 AM
👍👍
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Varsha_Upadhyay
12-Jun-2024 05:04 PM
Nice one
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